स्विस फर्म आईक्यूएयर द्वारा जारी विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में भारत में वायु प्रदूषण और बदतर हो गया है. इससे हवा की गुणवत्ता में सुधार का बीते तीन साल का चलन खत्म हो गया है. घातक और सूक्ष्म पीएम 2.5 प्रदूषक में मापा गया औसत वायु प्रदूषण 58.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है. यह आंकड़ा, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एयर क्‍वालिटी गाइडलाइन से 10 गुना अधिक है. 100 सबसे प्रदूषित स्थानों की सूची में 63 भारतीय शहर मौजूद हैं. इनमें से आधे से अधिक हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हैं. भारत का कोई भी शहर WHO के मानकों पर खरा नहीं उतर सका.

रिपोर्ट के अनुसार उत्तर भारत की स्थिति और भी बदतर है. राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्ली लगातार दूसरे साल दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी रही है. यहां पिछले वर्ष की तुलना में प्रदूषण लगभग 15 प्रतिशत बढ़ा है. यहां वायु प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ की सुरक्षा सीमा से लगभग 20 गुना अधिक था, जिसमें वार्षिक औसत के लिए पीएम2.5 96.4 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था. जबकि सुरक्षित सीमा 5 है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली का वायु प्रदूषण विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है. हालांकि, दुनिया का सबसे प्रदूषित स्थान राजस्थान का भिवाड़ी है. इसके बाद दिल्ली की पूर्वी सीमा पर उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद है. टॉप 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 10 भारत में हैं और ज्यादातर राष्ट्रीय राजधानी के आसपास हैं.

शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा विकसित एक वायु गुणवत्ता ‘जीवन सूचकांक’ से पता चलता है कि दिल्ली और लखनऊ के निवासी, अपने संभा‍वित जीवन में करीब दस साल और जोड़ सकते हैं. यदि वे वायु गुणवत्ता का स्तर डब्ल्यूएचओ के मानकों जैसा बनाए रखते हैं. ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेन मैनेजर अविनाश चंचल ने ‘आईक्यूएयर’ के हालिया आंकड़ों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह रिपोर्ट सरकारों और निगमों के लिए आंखें खोलने वाली है. उन्होंने कहा, ‘इससे एक बार फिर साबित होता है कि लोग खतरनाक रूप से प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं. वाहनों से होने वाला उत्सर्जन शहरों की आबोहवा में पीएम-2.5 कणों की भारी मौजूदगी के प्रमुख कारकों में से एक है.’ रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2021 में वैश्विक स्तर पर कोई भी देश डब्ल्यूएचओ के मानक पर खतरा नहीं उतरा और दुनिया के केवल तीन देशों ने इसे पूरा किया.

वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र, औद्योगिक अपशिष्ट, खाना पकाने के लिए बायोमास दहन और निर्माण क्षेत्र शामिल हैं. वास्तव में, पिछले साल नवंबर में, पहली बार वायु प्रदूषण के गंभीर स्तर के कारण दिल्ली के आसपास के कई बड़े बिजली संयंत्रों के साथ-साथ कई उद्योगों को बंद कर दिया गया था. भारत के लिए संकट की आर्थिक लागत सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है. हृदय और फेफड़ों की बीमारियों और कई अन्य गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों के अलावा वायु प्रदूषण से जुड़ी हर मिनट अनुमानित तीन मौतों के साथ स्वास्थ्य प्रभाव कहीं अधिक खराब है.