गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है और तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. ज्यों-ज्यों गर्मी बढ़ेगी बिजली की मांग में भी इजाफा होगा. लेकिन पर्याप्त बिजली आपूर्ति को लेकर अभी से सवाल उठने लगे हैं. इसका कारण है कोयले की सप्लाई में कमी. पावर प्लांट्स में कोयले का स्टॉक इस रविवार को घटकर 25.2 मिलियन टन पर में आ गया, जो कोयला मंत्रालय द्वारा तय किए गए 45 मिलियन टन के लक्ष्य से काफी कम है.
हालांकि, कोल इंडिया बिजली उत्पादन संयंत्रों को प्राथमिकता के आधार पर कोयला दे रही है, लेकिन देश के कई राज्यों के पॉवर प्लांट के पास अब भी कोयले का पर्याप्त भंडार नहीं है. इससे यह आशंका जताई जाने लगी है कि आगे फसल बुआई सीजन शुरू होने और गर्मी बढ़ने पर बिजली आपूर्ति में बाधा (Power crisis) उत्पन्न हो सकती है.
वहीं, कोल इंडिया ने अब नॉन पावर यूजर्स को दी जाने वाली कोयले की सप्लाई में कटौती कर दी है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार पहले कोल इंडिया नॉन पावर यूजर्स को 2,75,000 टन कोयले की सप्लाई किया करती थी. अब इसमें हर रोज करीब 17 फीसदी की कटौती की गई है. रेलवे भी पॉवर प्लांट्स को कोयले की सप्लाई के लिए ज्यादा वैगन दे रहा है. वही कोल इंडिया ने इंडस्ट्रियल कस्टमर्स को ट्रकों के जरिए कोयले की सप्लाई करने की बात कही है. हालांकि, इंडस्ट्रियल कस्टमर्स ट्रकों से सप्लाई लेने को राजी नहीं है.
एल्युमिनियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक मार्च, 2022 में एल्युमिनियम इंडस्ट्री को 450 गुणा ज्यादा रेट पर घरेलू कोयले की खरीद करनी पड़ी है. इसके बावजूद भी उन्हें समय पर सप्लाई नहीं मिली. उन्हें अब पिछले साल की तरह कोयले की कमी होने का डर सताने लगा है. आयातित कोयले के दामों में भारी बढ़ोतरी होने से भी इंडस्ट्री की मुश्किलें बढ़ी हैं.
रेलवे लाइन निर्माण से भी सप्लाई बाधित
भारतीय रेलवे के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर गौरव कृष्ण बंसल का कहना है कि कोयले की ढुलाई में देरी का एक कारण दो नई रेल लाइनों पर निर्माण कार्य चलना भी है. इन दोनों रेलवे लाइनों का कार्य अगले साल मार्च अंत तक पूरा होने की उम्मीद है. इसके अलावा भारतीय रेलवे ने कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 1 लाख वैगन और खरीदने के लिए टेंडर जारी किया है.
ट्रकों से ढुलाई नहीं फायदेमंद
एक रेलवे कैरिज, जिसे रैक कहा जाता है, 4,000 टन कोयला ढोने में सक्षम होता है वहीं एक ट्रक में केवल 25 टन ही कोयला आता है. इंडियन कैपेटिव पॉवर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी राजीव अग्रवाल का कहना है कि प्राइवेट इंडस्ट्री को सैंकड़ों किलोमीटर दूर सड़क मार्ग से कोयला सप्लाई करने से तो अच्छा है कि उन्हें कोयला दिया ही न जाए. अग्रवाल का कहना है कि ट्रकों से कोयले की सप्लाई महंगी तो है ही इससे प्रदूषण भी बहुत होता है.